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कौन कहता है
उसे जानती नहीं हूँ मै
उससे तो रोज़
मुलाकात
हुआ करती है
तुमसे तो शायद
कोई बात
छुपा ली होगी
उससे तो
दिल की
हर इक बात
हुआ करती है
कभी रूठता है वो
कभी रूठती हूँ मै
बातों बातों में
तकरार
हुआ करती है
जब किसी बात पे
उदास दिल ये होता है
उसकी
नर्म साँस
मेरे सांथ
हुआ करती है
ये अगर ख्वाब है
तो ख्वाब में ही
खुश हूँ मै
जहाँ
बस प्यार की
बरसात
हुआ करती है
इस दुनिया की
हकीकत से
वो ख्वाब
ज्यादा प्यारा है
जहाँ
मेरे सांथ
ये सारी बात
हुआ करती है ...

कुछ इस दिल ने दगा दिया,
कुछ दुनिया बेवफा मिली,
जिंदादिल होने की ये,
ज़िन्दगी से सजा मिली....
घात लगाये बैठी थी,
हर मोड़ पे कोई नाकामी,
लड़ने का जज्बा तो था,
क्यों हार हमे बेवजह मिली...
चिंगारी हर बार कोई,
जलती और जलकर बुझ जाती,
मिलने को मिली हर ख़ुशी मगर,
हर ख़ुशी हमे ग़मज़दा मिली...
मिले बहोत से लोग हमे,
कई दोस्त बने, कई रिश्ते भी,
जब मिली हमारी परछाई,
हमसे इतनी क्यों खफा मिली ...

क्यूँ अक्सर तनहाई मे,
मैं कुछ - कुछ सोचा करती हूँ ,
क्यूँ खुद से ही बातें करके,
अक्सर रोया करती हूँ ,
क्यूँ खयाल के सागर मे,
मैं खुद को डुबोया करती हूँ,
क्यूँ खुद ही मैं ख्वाब सजाकर,
उन्हें सँजोया करती हूँ,
खुद से करूँ जो ये सवाल,
तो यही जवाब मैं पाती हूँ,
शायद तनहाई से डरकर,
सपनों में खो जाती हूँ
सपनों में खो जाती हूँ ...

हर सुबह लाती है,
हर एक के लिए नए रंग,
किसी के लिए ख़ुशी,
किसी के लिए गम,
किसी के लिए ज्यादा,
किसी के लिए कम,
किसी के लिए मझदार,
किसी के लिए किनारा,
किसी के लिए तन्हाई,
तो किसी के लिए सहारा,
किसी के लिए पतझड़,
किसी के लिए शावन,
किसी के लिए मौत,
और किसी के लिए जीवन,
किसी के लिए शोहरत,
किसी के लिए गुमनामी,
किसी के लिए जीत,
पर किसी के लिए नाकामी,
क्या ऐसी कोई सुबह नहीं,
जिसका एक ही रंग हो,
ख़ुशी, शावन, शोहरत, जीत,
हर एक के संग हो,
क्या ऐसी कोई सुबह नहीं,
जो माँ की थाली जैसी हो,
निकम्मा हो या कमाऊ,
दो-दो रोटी ही बटी हो....??