Tuesday, March 24, 2009

कुछ इस दिल ने दगा दिया....












कुछ
इस दिल ने दगा दिया,
कुछ दुनिया बेवफा मिली,
जिंदादिल होने की ये,
ज़िन्दगी से सजा मिली....

घात लगाये बैठी थी,
हर मोड़ पे कोई नाकामी,
लड़ने का जज्बा तो था,
क्यों हार हमे बेवजह मिली...

चिंगारी हर बार कोई,
जलती और जलकर बुझ जाती,
मिलने को मिली हर ख़ुशी मगर,
हर ख़ुशी हमे ग़मज़दा मिली...

मिले बहोत से लोग हमे,
कई दोस्त बने, कई रिश्ते भी,
जब मिली हमारी परछाई,
हमसे इतनी क्यों खफा मिली ...

4 comments:

  1. मिले बहोत से लोग हमे,
    कई दोस्त बने, कई रिश्ते भी,
    जब मिली हमारी परछाई,
    हमसे इतनी क्यों खफा मिली ...

    dilchasp!

    ReplyDelete
  2. hi my love .......u hi udaas hone ki wajah kya , jo parchai gam ke andheron me na thi saath , uske khafa hone se bura bhi kya

    ReplyDelete
  3. बहुत खुबसूरत रचना है!

    ReplyDelete