Thursday, April 9, 2009

अनबूझी पहेली














भीगी
भीगी पलकों की
दिखती - छुपती कहानी की,

लम्बे तनहा रस्ते पे
कुछ खोने की - कुछ पाने की,

इक बोझ उठाये सीने पर
बस आगे बढ़ते जाने की,

कभी बेवजह मुस्कुराने की
कभी बेवजह आंसू बहाने की,

अंत के इंतजार में
सारी उम्र बिताने की,

जो भी यहाँ कमाया
सब यहीं गवाने की,

इक अनबूझी पहेली है
ये ज़िन्दगी,

खाली हाँथ आने की,
और खाली हाँथ जाने की .......

14 comments:

  1. bahut pyaara likha hai ..

    अंत के इंतजार में
    सारी उम्र बिताने की,

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  2. yaaaaawn..............kab khatam hogi ye poem aur jindagi dono hi

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  3. gud poems on ur post...
    do u wirte them urself?

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  4. thanks for the comment ... yep ...all are written by me ...

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  5. बहुत खूबसरत लिखती हैं आप ....सच में यही तो है जिंदगी ...आपने सच ही तो कहा है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  6. अंत के इंतजार में
    सारी उम्र बिताने की,

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  7. कभी बेवजह मुस्कुराने की
    कभी बेवजह आंसू बहाने की

    जिंदगी के फलसफे को क़रीब से समझाने की
    कामयाब कोशिश ......
    एक स्तरीय रचना ......
    बधाई . . . . . . .

    ---मुफलिस---

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  8. क्या बात है। बहुत ख़ूब लिखा आपने
    बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।

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  9. achhe bhaav hai lekhan me jaari rakhen....


    arsh

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  10. A very sweet and lovely poem with nice picture.

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  11. " अंत के इंतजार में
    सारी उम्र बिताने की "

    kya baat hai :)

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