Monday, May 4, 2009













मेरे इस घर में रहती है,
दोस्त मेरी इक तनहाई,
तुमभी रहा करते हो यहाँ,
जाने ये क्यूं कम लगता है..

तुमसे मिला करती हूं मैं,
अक्सर अपनी बातों में,
लेकिन जब तुमसे मिलती हूं,
बेजान सा आलम होता है...

रस्ता लम्बा होता है,
या बातें कम पड़ जाती हैं,
मै जितना बोला करती हूं,
तू उतना गुमसुम होता है..

जी लेने की ख्वाहिश भी है,
जाँ देने का अरमा भी है,
जग जितना रंगी लगता है,
जग उतना सूना लगता है..

मैं अक्सर रूठा करती हूं,
तू अक्सर मनाया करता है,
दिल अक्सर टूटा करता है,
क्यू ये सब अक्सर होता है....

18 comments:

  1. खूबसूरत कविता

    जी लेने की ख्वाहिश भी है,
    जाँ देने का अरमा भी है,
    जग जितना रंगी लगता है,
    जग उतना सूना लगता है..

    क्यू ये सब अक्सर होता है.... कितने सहज तरीके से गंभीर बात कही आपने

    ReplyDelete
  2. wahoo yaar superb...keep it up and up??? waise roothna manana hi to life hai.....kyon hai na...well aapka blog pada maza aa gaya achha likhti hai....likhte rahen swagat hai....mere blog par bhi kuch alag aapka swagat kar raha hai...padharen

    Jai ho mangalmay ho

    ReplyDelete
  3. एक के बाद एक सारी रचनाएँ मैंने पढ़ डाली.... बहुत खूबसूरत लिखती हैं आप.

    ReplyDelete
  4. रस्ता लम्बा होता है,
    या बातें कम पड़ जाती हैं,
    मै जितना बोला करती हूं,
    तू उतना गुमसुम होता है..

    ek bahut achhi rachna.....
    mn ki thaah ko paa lene ki
    kaamyaab koshish..........

    ---MUFLIS---

    ReplyDelete
  5. मैं अक्सर रूठा करती हूं,
    तू अक्सर मनाया करता है,
    दिल अक्सर टूटा करता है,
    क्यू ये सब अक्सर होता है....किन शब्दों में आपकी प्रशंसा करूँ समझ में नहीं आता...बहुत ही गहरे भाव सरल शब्दों में ...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..

    ReplyDelete
  6. Thanks a lot for your comment.
    I liked your blog very much.I appreciate for the beautiful poem written by you.You are welcome in my other blogs too.

    ReplyDelete
  7. मेरे इस घर में रहती है,
    दोस्त मेरी इक तनहाई,
    तुमभी रहा करते हो यहाँ,
    जाने ये क्यूं कम लगता है..

    achchha bayan hai.

    ReplyDelete
  8. very...nice to c ur blogs...ur really..sincere regarding blogs...plz come to my blogs..too

    ReplyDelete
  9. itni khoobsurat kavita ki main padhkar kahin kho gaya.. itni acche shabdchitr ban padhe hai ki main kya kahun ..
    isme prem hai viirah hai aur wo saare elements hai jo prem ko poornta dete hai ..

    aapko meri dil se badhai ..

    meri nayi kavita padhkar apna pyar aur aashirwad deve...to khushi hongi....

    vijay
    www.poemsofvijay.blogspot.com

    ReplyDelete
  10. मै जितना बोला करती हूं,
    तू उतना गुमसुम होता है..kitna sach kaha hai aapne..

    ReplyDelete
  11. मेरे पेज पर आपकी नयी पोस्ट की सूचना दो दिन पहले ही आ गयी थी किन्तु किन्ही कारणों से ये ओपन नहीं हो पा रही है और आपका ईमेल भी नहीं था फिर सोचा कि आपकी इस पुराणी पोस्ट पर टिप्पणी कर दूं .
    रोज कुरेदती हूं इस दर्द को, डरती हूं भर न जाये ये नासूर कहीं, रोज मांगती हूं दुआ तेरे दीदार की, जबकि जानती हूँ तू इस जहाँ में मौजूद नही ... लोग कहते हैं , म...
    2 days ago

    ReplyDelete
  12. बहुत खूबसूरती से आपने भावनावों को शब्दों में पिरोया है...मुझे आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया...मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है..

    ReplyDelete
  13. priyanka...na jane kyun apki nyee post nahi khul rahi...

    ReplyDelete
  14. जी लेने की ख्वाहिस ...........
    ..................................जग उतना सूना लगता है !

    जीने की इक तमन्ना
    मरने का इक इरादा
    रंगीन कितनी दुनिया
    सूना सा कोई वादा .

    ( अगन तेरी , बस मेरा धुंआ )

    ReplyDelete
  15. eagerly
    waiting for next post

    ---MUFLIS---

    ReplyDelete
  16. जी लेने की ख्वाहिश भी है,
    जाँ देने का अरमा भी है,
    जग जितना रंगी लगता है,
    जग उतना सूना लगता है.

    sach kaha hai aapne....

    ReplyDelete