Tuesday, January 27, 2009
परछाई सुनहरी यादों की ....
रोज भिगो देती हैं दामन, लहरें बीती बातों की,
रोज कहीं मिल जाती है परछाई सुनहरी यादों की ....
जी में आता है दौडू और छू लू उस परछाई को,
फ़िर हस पड़ती हू कोशिश पर अपने इन पागल हाथों की ....
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बीती हुई बातों की भूली-बिसरी यादों पर
ReplyDeleteरिश्तों के एहसास की परछाई के ख़ास रिश्ता उजागर करती हुई
आपकी ये नज़्म छोटी होते हुए भी
बहोत बड़ी बात कहती है ....
काव्यशैली भी असरदार है ....!
बधाई ......!!
---मुफलिस---
seedhe saral shabdo me bahut hi sundar abhivyakti... :)
ReplyDelete"फ़िर हस पड़ती हू कोशिश पर अपने इन पागल हाथों की ...."
kam shabdo me badi baat.
ReplyDelete---------------------------------------"VISHAL"
रोज़ नयन नम कर देता, कोई ख्वाब किसी बीते पल का ,
ReplyDeleteरोज़ नयी इक आस है जगती , खोया सब पा लेने की ,
रोज़ नया उत्साह है उठता , जीवन फिर से जीने का ,
रोज़ नयी उठती चिंगारी , राख से बीती बातों की .
छोटी परन्तु भावपूर्ण एवं गंभीर रचना .
बहुत सहत और सुन्दर अभिव्यक्ति
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